विकसित भारत 2047 के स्वरूप में देश के अर्थशास्त्रियों का होगा महत्वपूर्ण योगदान : प्रो. सोमनाथ सचदेवा कुवि में तीन दिवसीय इंडियन इकोनोमिक एसोसिएशन के 107 वें वार्षिक सम्मेलन का हुआ शुभारम्भ

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कुरुक्षेत्र (एकजोत): भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2047 तक विकसित भारत की जो परिकल्पना की है उसको साकार स्वरूप देने में भारत के अर्थशास्त्रियों का महत्वपूर्ण योगदान होगा। भारत की अर्थव्यवस्था लगभग 7 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रही है, आवश्यकता है इसे और अधिक विकसित करने की। भारत ने डिजीटल पैमेंट, हथियार निर्यात, अंतरिक्ष तकनीकी और उद्यमिता के क्षेत्र पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई है। आज भारत विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था है तथा 2030 तक भारत पूरे विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित होगा। यह उद्गार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सोमनाथ सचदेवा ने बतौर मुख्यातिथि कुवि के अर्थशास्त्र विभाग एवं इंडियन इकोनोमिक एसोसिएशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘सतत, विकसित एवं आत्मनिर्भर भारत’ विषय पर आधारित 107वें वार्षिक सम्मेलन में सम्बोधित करते हुए कहे। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत आज उद्यमिता के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित कर रहा है। आज भारत विश्व का सबसे युवा देश है। यहां के युवा उद्यमिता के माध्यम से पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्वावलंबी भारत अभियान के माध्यम से आने वाले दिनों में लाखों युवाओं को रोजगार मिलेगा। आज का युवा उद्यमिता के माध्यम से रोजगार लेने वाला नहीं अपितु रोजगार देने वाले की राह पर अग्रसर है। इससे पूर्व इंडियन इकोनोमिक एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं कुलपति श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, के प्रो. तपन कुमार शांडिल्य ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा की शुरूआत वैदिक काल से हुई है। ऋग्वेद व अथर्ववेद में इसके साक्षात प्रमाण मिलते हैं। भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं में अर्थशास्त्र की अर्थव्यवस्था का स्वरूप निहित है। वैदिक दर्शन में अर्थव्यवस्था प्रबंधन के विविध स्वरूप देखने को मिलते हैं। कौटिल्य का अर्थशास्त्र एवं चाणक्य नीति भारतीय सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था की धूरी है। इसी स्वरूप को भारतीय शिक्षा नीति 2020 में लागू किया गया है। क्षेत्रीय संस्कृति को महत्व दिया गया है। इस शिक्षा नीति में भारत के आत्मनिर्भर भारत का स्वरूप निहित है। आधुनिक भारत की अर्थव्यवस्था भारतीय ज्ञान परम्परा को समाहित कर निरंतर विकास की ओर अग्रसर है। भारत में आध्यात्मिक अर्थशास्त्र के माध्यम से ज्ञान परम्परा के अनुसार आने वाली पीढ़ियों को आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना चाहिए तभी सर्वे भवन्तु सुखिन के भाव आत्मसात किया जा सकता है।

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