कुरुक्षेत्र (एकता दुग्गल):किसानों को प्राकृतिक खेती और जैविक खेती के बीच अन्तर को समझना बेहद जरूरी है, कई किसान बन्धु प्राकृतिक खेती को भी जैविक/आर्गेनिक खेती मानकर इसे अपनाने में संकोच करते है जबकि यह जैविक खेती से बिल्कुल अलग और किसानों के लिए लाभप्रद है। उक्त शब्द गुरुकुल में आयोजित किसान चौपाल चर्चा में आए किसानों को सम्बोधित करते हुए राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहे। देश के बड़े मीडिया संस्थान द्वारा कराए गए इस भव्य कार्यक्रम में हरियाणा के कृषिमंत्री श्याम सिंह राणा, विख्यात कृषि वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ. हरिओम, डॉ. बलजीत सहारण सहित प्राकृतिक खेती के विस्तार हेतु कार्यरत आईसीएआर के कई कृषि विशेषज्ञ और प्रगतिशील किसान मौजूद रहे। आचार्य देवव्रत ने कहा कि देश में पिछले 40 वर्षों से जैविक खेती का प्रचार किया जा रहा है मगर आज तक कोई भी जैविक खेती का प्रभावी मॉडल नहीं बन पाया, इसके पीछे कारण कई हैं -जिस केंचुए द्वारा जैविक खाद बनाई जाती है वह विदेशी है और केवल गोबर खाता है, हैवी मेटल छोड़ता है। इसके अलावा जैविक खेती में खर्चा बहुत अधिक है और उत्पादन कम, जिस कारण यह खेती लोकप्रिय नहीं हुई। इसके विपरीत प्राकृतिक खेती में लागत बहुत कम है और उत्पादन पूरा, साथ ही किसान को प्राकृतिक उत्पाद का मूल्य भी डेढ़-दोगुणा मिलता है। प्राकृतिक खेती में किसान केवल एक देशी गाय के गोबर और गोमूत्र से 30 एकड़ भूमि पर खेती कर सकता है। किसान को बाजार से कोई खाद, कीटनाशक आदि खरीदने जरूरत ही नहीं पड़ती। राज्यपालश्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में देशभर में प्राकृतिक खेती का प्रचार-प्रसार जारी है और बड़ी संख्या में किसान प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं। गुजरात में 9 लाख से ज्यादा किसान प्राकृतिक खेती कर रहे है और आगामी दो वर्षों में यह आंकड़ा दोगुणा हो जाएगा।