कुरुक्षेत्र (एकजोत): स्वामी श्रद्धानन्द एक सच्चे राष्ट्रभक्त और शिक्षाविद् थे, उन्होंने मैकॉले की अंग्रेजी शिक्षा पद्धति को नकारते हुए हमारी पुरातन गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति को पुनर्स्थापित किया। बच्चों को अक्षरज्ञान के साथ-साथ एक सुरक्षित माहौल प्रदान करने और संस्कारवान् बनाने के लिए स्वामी श्रद्धानन्द जी ने गुरुकुल कांगड़ी, गुरुकुल इन्द्रप्रस्थ, गुरुकुल कुरुक्षेत्र तथा गुरुकुल सूपा, गुजरात की स्थापना की और शिक्षा के क्षेत्र में एक नई क्रांति का सूत्रपात किया। उक्त शब्द गुरुकुल कुरुक्षेत्र में आयोजित स्वामी श्रद्धानन्द बलिदान दिवस कार्यक्रम में आए अभिभावकों को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार ने कहे। इस अवसर पर गुरुकुल के प्रधान राजकुमार गर्ग, निदेशक ब्रिगेडियर डॉ. प्रवीण कुमार एवं प्राचार्य सूबे प्रताप सहित सभी अध्यापक एवं संरक्षकगण मौजूद रहे। डॉ. विद्यालंकार ने कहा कि स्वामी श्रद्धानन्द जी द्वारा लगाया गुरुकुलरूपी यह पौधा आज वट वृक्ष बन कर पूरे विश्व में उनके नाम को प्रकाशित कर रहा है। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने स्त्री शिक्षा, जाति प्रथा, अछूतोद्धार और बच्चों को संस्कारित शिक्षा का जो सपना देखा था, उसे उनके मानस पुत्र स्वामी श्रद्धानन्द ने पूरा किया। एक समय में स्वामी श्रद्धानन्द के जीवन में अनेक बुराइयां थी मगर स्वामी दयानन्द के एक ओजस्वी व्याख्यान ने उनके जीवन की दशा और दिशा ही बदल दी और उन्हें मुंशीराम से स्वामी श्रद्धानन्द बना दिया। स्वामी के विचारों से प्रेरित होकर मुंशीराम ने अपने जीवन से गंदे विचारों और दुर्गुणों को निकाल फेंका और समाज सुधार व मानव कल्याण का मार्ग अपनाया। उन्होंने कहा कि एक समय में स्वामी श्रद्धानन्द देश के शीर्ष नेताओं में शुमार रहे जिन्होंने हिन्दी भाषा, धर्म-परिवर्तन शुद्धि आन्दोलन व अछूतोद्धार को लेकर बहुत बड़ा कार्य किया। उन्होंने छात्रों से जीवन में सफलता हेतु हमेशा अपने गुरुजनों व माता-पिता का सम्मान करने का आह्वान किया।